नींद क्यों हो गई
आज बेचारी
थकने के बाद भी
आती नही
रात सारी सारी ।
बाहर देखती हूं
धिरे धिरे
सोने जा रही चांदनी
तारे भी मौन हैं
सुनकर अंधकार की कहानी
आखें क्यों हो गयी
बेबस बेचारी
निंद .......
है ठहरने लगे
उनके यादों के तराने
है मुस्किल में पड़ गया
दिल के भिगे भिगे फसाने
निंद क्यों हो गयी
पलकों की लाचारी
थकने के बाद भी
आती नहीं
रात सारी सारी
निंद.......!!



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